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चत्वारिंशत्त्रिकोणे चतुरधिकसमे चक्रराजे लसन्तीं

वास्तव में यह साधना जीवन की एक ऐसी अनोखी साधना है, जिसे व्यक्ति को निरन्तर, बार-बार सम्पन्न करना चाहिए और इसको सम्पन्न करने के लिए वैसे तो किसी विशेष मुहूर्त की आवश्यकता नहीं है फिर भी पांच दिवस इस साधना के लिए विशेष बताये गये हैं—

Her representation is just not static but evolves with creative and cultural influences, reflecting the dynamic mother nature of divine expression.

Worshippers of Shodashi search for not merely substance prosperity but additionally spiritual liberation. Her grace is claimed to bestow the two worldly pleasures as well as usually means to transcend them.

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥८॥

चतुराज्ञाकोशभूतां नौमि श्रीत्रिपुरामहम् ॥१२॥

She is an element of the Tridevi along with the Mahavidyas, symbolizing a spectrum of divine femininity and related to both of those moderate and intense elements.

लक्ष्या मूलत्रिकोणे गुरुवरकरुणालेशतः कामपीठे

भगवान् शिव ने कहा — ‘कार्तिकेय। तुमने एक अत्यन्त रहस्य का प्रश्न पूछा है और मैं प्रेम वश तुम्हें यह अवश्य ही बताऊंगा। जो सत् रज एवं तम, भूत-प्रेत, मनुष्य, प्राणी हैं, वे सब इस प्रकृति से उत्पन्न हुए हैं। वही पराशक्ति “महात्रिपुर सुन्दरी” है, वही सारे चराचर संसार को उत्पन्न करती है, पालती है और नाश करती है, वही शक्ति इच्छा ज्ञान, क्रिया शक्ति और ब्रह्मा, विष्णु, शिव रूप वाली है, वही त्रिशक्ति के रूप में सृष्टि, स्थिति और विनाशिनी है, ब्रह्मा रूप में वह इस चराचर more info जगत की सृष्टि करती है।

By embracing Shodashi’s teachings, persons cultivate a daily life enriched with function, like, and relationship for the divine. Her blessings remind devotees of the infinite magnificence and knowledge that reside in just, empowering them to Dwell with authenticity and joy.

हंसोऽहंमन्त्रराज्ञी हरिहयवरदा हादिमन्त्रार्थरूपा ।

The philosophical dimensions of Tripura Sundari extend further than her physical characteristics. She signifies the transformative energy of splendor, which can direct the devotee in the darkness of ignorance to The sunshine of knowledge and enlightenment.

ब्रह्माण्डादिकटाहान्तं तां वन्दे सिद्धमातृकाम् ॥५॥

The one who does this Sadhana becomes like Cupid (Shodashi Mahavidya). He's converted into a rich, preferred amongst Females and blessed with son. He gets the quality of hypnotism and achieves the self electricity.

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